गाय Poetry (page 3)

शहर का शहर जानता है मुझे

शकील ग्वालिआरी

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया

शकील बदायुनी

आँखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए

शकील बदायुनी

बस एक रात ठहरना है क्या गिला कीजे

शकेब जलाली

वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत

शकेब जलाली

ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया

शहज़ाद अहमद

है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'

शहरयार

निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए

शहरयार

तस्ख़ीर-ए-फ़ितरत के बअ'द

शहाब जाफ़री

इस धूप से क्या गिला है मुझ को

शहाब जाफ़री

हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर

शाद लखनवी

किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया

शाद अज़ीमाबादी

वो तो आईना-नुमा था मुझ को

शबनम शकील

बे-वजह तहफ़्फ़ुज़ की ज़रूरत भी नहीं है

शबनम शकील

देख क्या तेरी जुदाई में है हालत मेरी

शबाब

तकमील-ए-इश्क़ जब हो कि सहरा भी छोड़ दे

सेहर इश्क़ाबादी

तकमील-ए-इश्क़ जब हो कि सहरा भी छोड़ दे

सेहर इश्क़ाबादी

अल्लाह दे सके तो दे ऐसी ज़बाँ मुझे

सीमाब सुल्तानपुरी

कभी तो इश्क़ में उन के सदाक़त आ ही जाएगी

सय्यद एजाज़ अहमद रिज़वी

बर्बादियों का अपनी गिला क्या करेंगे हम

सय्यद एजाज़ अहमद रिज़वी

अगला सफ़र तवील नहीं

सत्यपाल आनंद

उसी का जल्वा-ए-ज़ेबा है चाँदनी क्या है

सरीर काबिरी

लाख हो माज़ी दामन-गीर

सरदार सोज़

यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था

साक़िब लखनवी

असीर-ए-इश्क़-ए-मरज़ हैं तो क्या दवा करते

साक़िब लखनवी

दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं

सलमान अख़्तर

मुझे गिला न किसी संग का न आहन का

सलीम अहमद

कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं

सलीम अहमद

उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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