गाय Poetry (page 8)

ज़िंदगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

निसार मैं तेरी गलियों के

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किसी गुमाँ पे तवक़्क़ो' ज़ियादा रखते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द इक्सीर के सिवा क्या है

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

रानाई-ए-कौनैन से बे-ज़ार हमीं थे

एहसान दानिश

न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और है

दिलावर फ़िगार

मैं सिर्फ़ वो नहीं जो नज़र आ गया तुझे

दिल अय्यूबी

सामने जो कहा नहीं होता

दरवेश भारती

इस अदा से वो जफ़ा करते हैं

दाग़ देहलवी

दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने

दाग़ देहलवी

आरज़ू है वफ़ा करे कोई

दाग़ देहलवी

बे-क़रारी दिल-ए-मुज़्तर की बढ़ाई हम ने

बबल्स होरा सबा

सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को

बिस्मिल अज़ीमाबादी

पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ

बेख़ुद देहलवी

तुम से शिकायत क्या करूँ

बहज़ाद लखनवी

इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया

बहज़ाद लखनवी

क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया

बेदम शाह वारसी

शिकवा अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

इश्वा है नाज़ है ग़म्ज़ा है अदा है क्या है

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

मोहब्बत की इंतिहा चाहता हूँ

बासित भोपाली

किसी के नक़्श-ए-क़दम का निशाँ नहीं मिलता

बासित भोपाली

माना उस को गिला नहीं मुझ से

बशीर महताब

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा

बशीर बद्र

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

जो ज़माने का हम-ज़बाँ न रहा

बाक़र मेहदी

फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए

बाक़र मेहदी

रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत

बख़्श लाइलपूरी

बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला

ज़फ़र

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

ज़फ़र

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