गाय Poetry (page 2)

आबरू की किसे ज़रूरत है

सुनील कुमार जश्न

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

जो कुछ हुआ सो हुआ अब सवाल ही क्या है

सुहा मुजद्ददी

ज़ब्त की क़ैद-ए-सख़्त ने हम को रिहा नहीं किया

सूफ़िया अनजुम ताज

तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे

सूफ़ी तबस्सुम

उल्फ़त का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े

सुदर्शन फ़ाकिर

मैं यूँ तो ख़्वाब की ताबीर सोचता भी नहीं

सुबहान असद

इस का ग़म है कि मुझे वहम हुआ है शायद

सुबहान असद

नज़र-ए-तग़ाफ़ुल-ए-यार का गिला किस ज़बाँ सीं करूँ बयाँ

सिराज औरंगाबादी

ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही

सिराज औरंगाबादी

हमारी आँखों की पुतलियों में तिरा मुबारक मक़ाम हैगा

सिराज औरंगाबादी

कोई शिकवा कोई गिला दे दे

सिरज़ अालम ज़ख़मी

आग को फूल कहे जाएँ ख़िर्द-मंद अपने

सिद्दीक़ शाहिद

अश्क जो आँख में उबलते हैं

शुजा

जिस तरफ़ हाल-ए-जुनूँ में तेरे दीवाने गए

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

ग़ैर से किया गिला करे कोई

शिफ़ा कजगावन्वी

यार को रग़बत-ए-अग़्यार न होने पाए

शिबली नोमानी

मह्व हूँ मैं जो उस सितमगर का

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

दिल का गिला फ़लक की शिकायत यहाँ नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर

शौक़ क़िदवाई

रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर

शौक़ क़िदवाई

लब चुप हैं तो क्या दिल गिला-पर्दाज़ नहीं है

शौक़ क़िदवाई

ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ

शौकत परदेसी

एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए

शारिक़ कैफ़ी

सराबों का सफ़र

शमीम क़ासमी

ज़रा भी जिस की वफ़ा का यक़ीन आया है

शमीम जयपुरी

दुनिया-ए-मोहब्बत में हम से हर अपना पराया छूट गया

शमीम जयपुरी

लक़ड़हारे तुम्हारे खेल अब अच्छे नहीं लगते

शमीम हनफ़ी

मुझ को तिरे सुलूक से कोई गिला न था

शकील शम्सी

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