कोई शिकवा कोई गिला दे दे
मुझ को जीने का हौसला दे दे
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बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है
ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
दिल में रह रह के शोर उठता है
इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
कहाँ तलक तिरी यादों से तख़लिया कर लें
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते
क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई
सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
वो इतनी शिद्दतों से सोचता है