सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
मिरे सवाल का कुछ तो जवाब होना था
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ज़मीं पे रहते हुए कहकशाँ से मिलते हैं
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
बेवफ़ाई का मुझे इल्ज़ाम देता था वो शख़्स
तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
दिल में रह रह के शोर उठता है
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है
इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
बिखरते टूटते लम्हों में ऐसा लगता है
दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं
ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई