तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
वो दिल ही क्या जो टूट के पत्थर न हो सके
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बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
ज़मीं पे रहते हुए कहकशाँ से मिलते हैं
दिल में रह रह के शोर उठता है
सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
वो इतनी शिद्दतों से सोचता है
कहाँ तलक तिरी यादों से तख़लिया कर लें
बेवफ़ाई का मुझे इल्ज़ाम देता था वो शख़्स
ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई