हाथ Poetry (page 38)

हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार

राही फ़िदाई

तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे

राहील फ़ारूक़

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

कितनी दूर से चलते चलते ख़्वाब-नगर तक आई हूँ

इरम ज़ेहरा

कैसे बनाऊँ हाथ पर तस्वीर ख़्वाब की

इरम ज़ेहरा

मुझ पे पत्थर फेंकने वालों को तेरे शहर में

इक़बाल साजिद

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

इक़बाल साजिद

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

इक़बाल साजिद

साए की तरह बढ़ न कभी क़द से ज़ियादा

इक़बाल साजिद

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

लगा दी काग़ज़ी मल्बूस पर मोहर-ए-सबात अपनी

इक़बाल साजिद

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर

इक़बाल साजिद

ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला

इक़बाल साजिद

ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला

इक़बाल साजिद

गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की

इक़बाल साजिद

इक रिदा-ए-सब्ज़ की ख़्वाहिश बहुत महँगी पड़ी

इक़बाल साजिद

ख़ुदा जाने गिरेबाँ किस के हैं और हाथ किस के हैं

इक़बाल नवेद

अगरचे पार काग़ज़ की कभी कश्ती नहीं जाती

इक़बाल नवेद

जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं

इक़बाल हैदर

जब घर की आग बुझी तो कुछ सामान बचा था जलने से

इक़बाल अज़ीम

कोई अच्छा लगे कितना ही भरोसा न करो

इक़बाल अासिफ़

जो हो सके तो कभी इतनी मेहरबानी कर

इक़बाल अासिफ़

दरख़्त हाथ हिलाते थे रहनुमाई को

इक़बाल अशहर कुरेशी

फ़रार पा न सका कोई रास्ता मुझ से

इक़बाल अशहर कुरेशी

कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए

इक़बाल अशहर

कहीं शबनम कहीं ख़ुशबू कहीं ताज़ा कली रखना

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

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