हाथ Poetry (page 80)

चाँद के पेट में हमल मछली

आदिल मंसूरी

आमीन

आदिल मंसूरी

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

आदिल मंसूरी

जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा

आदिल मंसूरी

होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था

आदिल मंसूरी

हर ख़्वाब काली रात के साँचे में ढाल कर

आदिल मंसूरी

गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से

आदिल मंसूरी

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

आदिल मंसूरी

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

आदिल मंसूरी

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार

आदिल मंसूरी

आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के

आदिल मंसूरी

दुम

आदिल लखनवी

उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए

अदीम हाशमी

रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो

अदीम हाशमी

किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया

अदीम हाशमी

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

अदीम हाशमी

बस लम्हे भर में फ़ैसला करना पड़ा मुझे

अदील ज़ैदी

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अदीब सहारनपुरी

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अदीब सहारनपुरी

ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने

अदा जाफ़री

यही नहीं कि ज़ख़्म-ए-जाँ को चारा-जू मिला नहीं

अदा जाफ़री

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने

अदा जाफ़री

क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ

अदा जाफ़री

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

अदा जाफ़री

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा

अदा जाफ़री

गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ

अदा जाफ़री

आँखों में रूप सुब्ह की पहली किरन सा है

अदा जाफ़री

तमाम हिज्र उसी का विसाल है उस का

अबुल हसनात हक़्क़ी

रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का

आबरू शाह मुबारक

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