हुआ Poetry (page 119)

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है

हुसैन माजिद

जब झूट रावियों के क़लम बोलने लगे

हुसैन ताज रिज़वी

हर्कुलेस और पाटे-ख़ान की सर्कस

हुसैन आबिद

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले

हुरमतुल इकराम

ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं

हुरमतुल इकराम

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

हुमैरा रहमान

ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन

हुमैरा राहत

हुज़ूर आप कोई फ़ैसला करें तो सही

हुमैरा राहत

मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ

हुमैरा राहत

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हुमैरा राहत

अब तो दीवानों से यूँ बच के गुज़र जाती है

होश तिर्मिज़ी

वो तक़ाज़ा-ए-जुनूँ अब के बहारों में न था

होश तिर्मिज़ी

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया

हीरानंद सोज़

यूसुफ़-ए-सानी

हिमायत अली शाएर

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

हारून की आवाज़

हिमायत अली शाएर

दूसरा तजरबा

हिमायत अली शाएर

अन-कही

हिमायत अली शाएर

आईना-दर-आईना

हिमायत अली शाएर

ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के

हिमायत अली शाएर

यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ

हिमायत अली शाएर

मंज़िल के ख़्वाब देखते हैं पाँव काट के

हिमायत अली शाएर

जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए

हिमायत अली शाएर

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