हुआ Poetry (page 120)

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो

हिमायत अली शाएर

चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब

हिमायत अली शाएर

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

वही हुआ कि ख़ुद भी जिस का ख़ौफ़ था मुझे

हिलाल फ़रीद

थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई

हिलाल फ़रीद

सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा

हिलाल फ़रीद

रास्ता देर तक सोचता रह गया

हिलाल फ़रीद

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

वो ये कहते हैं ज़माने की तमन्ना मैं हूँ

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

सितम तीर-ए-निगाह-ए-दिलरुबा था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

मिरे शाने पे रहने दो अभी गेसू ज़रा ठहरो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

तन को मिट्टी नफ़स को हवा ले गई

हीरा लाल फ़लक देहलवी

पहुँचो गर इक चाँद पर सौ और आते हैं नज़र

हीरा लाल फ़लक देहलवी

सुकून-ए-दिल के लिए और क़रार-ए-जाँ के लिए

हीरा लाल फ़लक देहलवी

रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स

हीरा लाल फ़लक देहलवी

आह-ए-ज़िंदाँ में जो की चर्ख़ पे आवाज़ गई

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या गुल खिलाए देखिए तपती हुई हवा

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

वहम-ओ-गुमाँ में भी कहाँ ये इंक़िलाब था

हयात लखनवी

सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा

हयात लखनवी

मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था

हयात लखनवी

महक किरदार की आती रही है

हयात लखनवी

कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं

हयात लखनवी

किधर का चाँद हुआ 'मेहर' के जो घर आए

हातिम अली मेहर

करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम

हातिम अली मेहर

दर-ब-दर मारा-फिरा मैं जुस्तुजू-ए-यार में

हातिम अली मेहर

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

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