कौशल Poetry (page 14)

आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

सहाफ़ी से

हबीब जालिब

अब तलक तुंद हवाओं का असर बाक़ी है

हबाब हाश्मी

ज़ाहिर मुसाफ़िरों का हुनर हो नहीं रहा

गुलज़ार बुख़ारी

वफ़ा की तश्हीर करने वाला फ़रेब-गर है सितम तो ये है

गुलज़ार बुख़ारी

देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़मीं की हद अगर कोई नहीं है

गाैस मथरावी

ज़मीं के साथ फ़लक के सफ़र में हम भी हैं

ग़यास मतीन

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं

ग़नी एजाज़

आप अपने को मो'तबर कर लें

ग़नी एजाज़

मिरा उस के पस-ए-दीवार घर होता तो क्या होता

ग़मगीन देहलवी

हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे

ग़ालिब

हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल-लगी के 'असद'

ग़ालिब

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ग़ालिब

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

ग़ालिब

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं

ग़ालिब

दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए

ग़ालिब

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे

ग़फ़्फ़ार बाबर

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

अहल-ए-हुनर के दिल में धड़कते हैं सब के दिल

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

बशर की ज़ात में शर के सिवा कुछ और नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

शख़्सियत का ये तवाज़ुन तेरा हिस्सा है 'फ़ज़ा'

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

देखना हैं खेलने वालों की चाबुक-दस्तियाँ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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