कौशल Poetry (page 12)

जब 'मीर' ओ 'मीरज़ा' के सुख़न राएगाँ गए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शिकस्त

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरा ज़ेहन मुझ को रहा करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जुनूँ का रंग भी हो शोला-ए-नुमू का भी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ैरों से दाद-ए-जौर-ओ-जफ़ा ली गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रह-ए-जुस्तुजू में भटक गए तो किसी से कोई गिला नहीं

इफ़्फ़त अब्बास

मिरी मोहब्बत की बे-ख़ुदी को तलाश-ए-हक़्क़-ए-जलाल देना

इफ़्फ़त अब्बास

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले

होश तिर्मिज़ी

वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया

हीरानंद सोज़

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

आँसू को अपने दीदा-ए-तर से निकालना

हज़ीं लुधियानवी

तमाम तारों को जैसे क़मर से जोड़ा है

हस्सान अहमद आवान

न सही गर उन्हें ख़याल नहीं

हसरत मोहानी

क्या वो अब नादिम हैं अपने जौर की रूदाद से

हसरत मोहानी

इस जहाँ में सिफ़त-ए-इश्क़ से मौसूफ़ हैं हम

हसरत अज़ीमाबादी

फिरी सी देखता हूँ इस चमन की कुछ हवा बुलबुल

हसरत अज़ीमाबादी

कब तलक हम को न आवेगा नज़र देखें तो

हसरत अज़ीमाबादी

दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का

हसरत अज़ीमाबादी

जो बात हक़ीक़त हो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर कहिए

हसीब रहबर

उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी

हसन नईम

उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं

हसन नईम

ना-उमीदी ने यूँ सताया था

हसन नईम

न मेरे ख़्वाब को पैकर न ख़द्द-ओ-ख़ाल दिया

हसन नईम

मुझ को कोई भी सिला मिलने में दुश्वारी न थी

हसन नईम

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या

हसन नईम

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