कौशल Poetry (page 19)

सहरा से भी वीराँ मिरा घर है कि नहीं है

अासिफ़ जमाल

सुकूत-ए-शब के हाथों सोंप कर वापस बुलाता है

अशअर नजमी

दैर-ओ-हरम भी आए कई इस सफ़र के बीच

अाशा प्रभात

घरौंदे

असग़र मेहदी होश

इस से पहले कि हवा मुझ को उड़ा ले जाए

असग़र मेहदी होश

जाने क्यूँ लोग ग़म से डरते हैं

असर अकबराबादी

जाऊँ कहाँ शुऊ'र-ए-हुनर किस के पास है

असद जाफ़री

मिले जो उस से तो यादों के पर निकल आए

अरशद अब्दुल हमीद

ज़ंजीर से उठती है सदा सहमी हुई सी

अर्श सिद्दीक़ी

फिर हुनर-मंदों के घर से बे-बुनर जाता हूँ मैं

अर्श सिद्दीक़ी

मेरे प्यारे वतन

अर्श मलसियानी

रहती है सबा जैसे ख़ुशबू के तआ'क़ुब में

आरिफ़ अंसारी

बाइ'स-ए-अर्ज़-ए-हुनर कर्ब-ए-निहानी निकला

अक़ील शादाब

सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं

अनवर शऊर

इस इब्तिदा की सलीक़े से इंतिहा करते

अनवर मसूद

क़याम-गाह न कोई न कोई घर मेरा

अनवर जलालपुरी

सच्चाई की ख़ुशबू की रमक़ तक न थी उन में

अंजुम तराज़ी

हर घर के मकीनों ने ही दर खोले हुए थे

अंजुम तराज़ी

सोला दिसम्बर

अंजुम सलीमी

जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है

अंजुम रहबर

जान से कैसे जाया जाता है

अंजुम ख़याली

ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गया

अंजुम ख़लीक़

कार-ए-हुनर सँवारने वालों में आएगा

अंजुम ख़लीक़

जहाँ सीनों में दिल शानों पे सर आबाद होते हैं

अंजुम ख़लीक़

हर शे'र से मेरे तिरा पैकर निकल आए

अंजुम ख़लीक़

दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है

अंजुम ख़लीक़

चाहे तू शौक़ से मुझे वहशत-ए-दिल शिकार कर

अंजुम ख़लीक़

अब शहर में अक़दार-कुशी एक हुनर है

अंजुम ख़लीक़

तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया

अंजुम इरफ़ानी

लहजे का रस हँसी की धनक छोड़ कर गया

अंजुम इरफ़ानी

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