जान Poetry (page 36)
आशिक़ सा बद-नसीब कोई दूसरा न हो
हफ़ीज़ जालंधरी
मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
हफ़ीज़ होशियारपुरी
जो नज़र से बयान होती है
हफ़ीज़ बनारसी
जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई
हफ़ीज़ बनारसी
हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है
हफ़ीज़ बनारसी
वो निगाहें जो दिल-ए-महज़ूँ में पिन्हाँ हो गईं
हादी मछलीशहरी
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
हादी मछलीशहरी
मुलाक़ात
हबीब जालिब
मता-ए-ग़ैर
हबीब जालिब
कॉफ़ी-हाउस
हबीब जालिब
बगिया लहूलुहान
हबीब जालिब
कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
हबीब जालिब
हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं
हबीब जालिब
तालिब-ए-बोसा हूँ मैं क़ासिद वो हैं ख़्वाहान-ए-जान
हबीब मूसवी
शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा
हबीब मूसवी
सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं
हबीब मूसवी
क़त्अ होता रहे इस तरह बयान-ए-वाइज़
हबीब मूसवी
किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर
हबीब मूसवी
जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा
हबीब मूसवी
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
हबीब मूसवी
है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त
हबीब मूसवी
है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़
हबीब मूसवी
फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है
हबीब मूसवी
अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ
हबीब मूसवी
बिछड़ो तो ये ध्यान रखना
हबीब कैफ़ी
वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
तेज़ हवाओ अब डरना घबराना कैसा
गुलज़ार वफ़ा चौदरी
दर्द
गुलनाज़ कौसर
आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
तू सरहद-ए-ख़याल से आगे गुज़र गया
गुलाम जीलानी असग़र
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