जान Poetry (page 34)

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

हर-चंद दूर दूर वो हुस्न-ओ-जमाल है

हामिद इलाहाबादी

इक रोज़ जो गुलशन में वो जान-ए-बहार आए

हामिद इलाहाबादी

हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज

हमीद नागपुरी

ऐ दोस्त दर्द-ए-दिल का मुदावा किया न जाए

हमीद जालंधरी

फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा

हकीम नासिर

हम किसी बहरूपिए को जान लें मुश्किल नहीं

हकीम मंज़ूर

छोड़ कर मुझ को कहीं फिर उस ने कुछ सोचा न हो

हकीम मंज़ूर

आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा

हकीम मंज़ूर

हर चोट पर ज़माने की हम मुस्कुराए हैं

हैरत सहरवर्दी

हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए

हैरत गोंडवी

सिवाए रंज कुछ हासिल नहीं है इस ख़राबे में

हैदर अली आतिश

दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर

हैदर अली आतिश

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

हैदर अली आतिश

उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए

हैदर अली आतिश

तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा

हैदर अली आतिश

सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई

हैदर अली आतिश

सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का

हैदर अली आतिश

रुख़ ओ ज़ुल्फ़ पर जान खोया किया

हैदर अली आतिश

मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया

हैदर अली आतिश

मौत माँगूँ तो रहे आरज़ू-ए-ख़्वाब मुझे

हैदर अली आतिश

क्या क्या न रंग तेरे तलबगार ला चुके

हैदर अली आतिश

ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे

हैदर अली आतिश

काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है

हैदर अली आतिश

फ़र्त-ए-शौक़ उस बुत के कूचे में लगा ले जाएगा

हैदर अली आतिश

फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा

हैदर अली आतिश

दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी

हैदर अली आतिश

दौलत-ए-हुस्न की भी है क्या लूट

हैदर अली आतिश

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