हम किसी बहरूपिए को जान लें मुश्किल नहीं
उस को क्या पहचानिये जिस का कोई चेहरा न हो
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तुझ पे खुल जाएँगे ख़ुद अपने भी असरार कई
बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल
ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी
कुछ समझ आया न आया मैं ने सोचा है उसे
न जाने किस लिए रोता हूँ हँसते हँसते मैं
छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा
हो आँख अगर ज़िंदा गुज़रती है न क्या क्या
शहर के आईन में ये मद भी लिक्खी जाएगी
तेरी आँखों में आँसू भी देखे हैं
जो मेरे पास था सब लूट ले गया कोई
हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया