शहर के आईन में ये मद भी लिक्खी जाएगी
ज़िंदा रहना है तो क़ातिल की सिफ़ारिश चाहिए
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अपनी नज़र से टूट कर अपनी नज़र में गुम हुआ
फूल हो कर फूल को क्या चाहना
सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए
बाग़ में होना ही शायद सेब की पहचान थी
मुझ में थे जितने ऐब वो मेरे क़लम ने लिख दिए
हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया
मेरे सामने मेरे घर का पूरा नक़्शा बिखरा है
कोई पयाम अब न पयम्बर ही आएगा
ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी
वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने
मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का