तेरी आँखों में आँसू भी देखे हैं
तेरे हाथों में देखा है ख़ंजर भी
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वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने
कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए
सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए
हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया
फूल हो कर फूल को क्या चाहना
अजब सहरा बदन पर आब का इबहाम रक्खा है
जो मेरे पास था सब लूट ले गया कोई
सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है
हम किसी बहरूपिए को जान लें मुश्किल नहीं
हो आँख अगर ज़िंदा गुज़रती है न क्या क्या
ढल गया जिस्म में आईने में पत्थर में कभी
बाग़ में होना ही शायद सेब की पहचान थी