छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा
वहम था मेरा कि पत्थर आईना हो जाएगा
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कुछ समझ आया न आया मैं ने सोचा है उसे
ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी
देखते हैं दर-ओ-दीवार हरीफ़ाना मुझे
हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया
मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का
वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने
सफ़र ही कोई रहेगा न फ़ासला कोई
मुंतशिर सायों का है या अक्स-ए-बे-पैकर का है
तेरी आँखों में आँसू भी देखे हैं
मुझ में थे जितने ऐब वो मेरे क़लम ने लिख दिए
बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल