जान Poetry (page 37)

तोड़ कर शीशा-ए-दिल को मिरे बर्बाद न कर

गुहर खैराबादी

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

मुँह ढाँप के मैं जो रो रहा हूँ

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

शेर जब खुलता है खुलते हैं मआनी क्या क्या

गोविन्द गुलशन

सँभल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा

गोविन्द गुलशन

मुंतज़िर आँखें हैं मेरी शाम से

गोविन्द गुलशन

नज़्म

गोपाल मित्तल

मुझ पे तू मेहरबान है प्यारे

गोपाल मित्तल

अगरचे बे-हिसी-ए-दिल मुझे गवारा नहीं

गोपाल मित्तल

राह से मुझ को हटा कर ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे

ग़ुलाम मौला क़लक़

पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा

ग़ुलाम मौला क़लक़

न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल

ग़ुलाम मौला क़लक़

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़

ग़ुलाम मौला क़लक़

दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ

ग़ुलाम मौला क़लक़

आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

आए क्या तेरा तसव्वुर ध्यान में

ग़ुलाम मौला क़लक़

आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मक़्सूद-ए-उल्फ़त

ग़ुलाम भीक नैरंग

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