जान Poetry (page 39)

देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर

जोर्ज पेश शोर

पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा

जोर्ज पेश शोर

आइए ऐ जान-ए-आलम आइए

गौहर बेगम गौहर

अर्ज़-ए-दकन में जान तो दिल्ली में दिल बनी

गणेश बिहारी तर्ज़

साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा

गणेश बिहारी तर्ज़

एहसास-ए-जुर्म जान का दुश्मन है 'जाफ़री'

फ़ुज़ैल जाफ़री

दिल मुतमइन है हर्फ़-ए-वफ़ा के बग़ैर भी

फ़ुज़ैल जाफ़री

चुप रहे देख के उन आँखों के तेवर आशिक़

फ़ुज़ैल जाफ़री

जी तन में नहीं न जान बाक़ी

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

न में यक़ीन में रख्खूँ न तो गुमान में रख

फ़िरदौस गयावी

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है

फ़िराक़ गोरखपुरी

हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

है सख़्त मुश्किल में जान साक़ी पिलाए आख़िर किधर से पहले

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

तुम्हीं इक नहीं जाँ-सेताँ और भी हैं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते

फ़ाज़िल जमीली

ख़ाक में मुझ को मिरी जान मिला रक्खा है

फ़ज़ल हुसैन साबिर

खुला न मुझ से तबीअत का था बहुत गहरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

हाथ फैलाओ तो सूरज भी सियाही देगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अपने लोगों के नाम

फ़य्याजुद्दीन साइब

आज जाने की ज़िद न करो

फ़य्याज़ हाशमी

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