जान Poetry (page 40)

न तुम मेरे न दिल मेरा न जान-ए-ना-तवाँ मेरी

फ़य्याज़ हाशमी

इश्क़ किया तो अपनी ही नादानी थी

फ़े सीन एजाज़

कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है

फ़े सीन एजाज़

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है

फ़े सीन एजाज़

ठेस कुछ ऐसी लगी है कि बिखरना है उसे

फ़ातिमा हसन

रूह की माँग है वो जिस्म का सामान नहीं

फ़ातिमा हसन

सुराग़ भी न मिले अजनबी सदा के मुझे

फ़रियाद आज़र

हम वफ़ादार हैं और इस से ज़ियादा क्या हों

फ़रताश सय्यद

दर-ए-फ़क़ीर पे जो आए वो दुआ ले जाए

फ़रताश सय्यद

कोई मौसम हो कुछ भी हो सफ़र करना ही पड़ता है

फ़र्रुख़ जाफ़री

रंग ख़ाके में नया भर दूँगा मैं

फ़ारूक़ नाज़की

नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा

फ़ारूक़ मुज़्तर

ये सौदा इश्क़ का आसान सा हे

फ़ारूक़ बख़्शी

वो ख़ुद अपना दामन बढ़ाने लगे

फ़ारूक़ बख़्शी

कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ

फ़ारूक़ बख़्शी

जंग में जाएगा अब मेरा ही सर जान गया

फ़ारूक़ अंजुम

देख कर उस हसीन पैकर को

फ़ारिग़ बुख़ारी

लाख रहे शहरों में फिर भी अंदर से देहाती थे

फ़रहत ज़ाहिद

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है

फ़रहत शहज़ाद

हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते

फ़रहत शहज़ाद

हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता

फ़रहत शहज़ाद

आँख को जकड़े थे कल ख़्वाब अज़ाबों के

फ़रहत शहज़ाद

मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे

फ़रहत नदीम हुमायूँ

ना-रसाई

फ़रहत एहसास

दुनिया को कहाँ तक जाना है

फ़रहत एहसास

तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम

फ़रहत एहसास

साँसें ना-हमवार मिरी

फ़रहत एहसास

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

फ़रहत एहसास

मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो

फ़रहत एहसास

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