जान Poetry (page 41)

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास

जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से

फ़रहत एहसास

इश्क़ में कितने बुलंद इम्कान हो जाते हैं हम

फ़रहत एहसास

हम को बरा-ए-दुनिया बे-जान कर दिया है

फ़रहत एहसास

गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है

फ़रहत एहसास

इक हवा सा मिरे सीने से मिरा यार गया

फ़रहत एहसास

बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और इक जान हो जाते

फ़रहत एहसास

शहर-दर-शहर दीदा-वर भटके

फ़रहत अब्बास

हम से मिल कर कोई गुफ़्तुगू कीजिए

फ़रहत अब्बास

तुम हो शायर मिरी जान जीते रहो

फ़रीद जावेद

जब भी शम-ए-तरब जलाई है

फ़रीद जावेद

ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था

फ़ानी बदायुनी

याँ होश से बे-ज़ार हुआ भी नहीं जाता

फ़ानी बदायुनी

वो मश्क़-ए-ख़ू-ए-तग़ाफ़ुल फिर एक बार रहे

फ़ानी बदायुनी

वादी-ए-शौक़ में वारफ़्ता-ए-रफ़्तार हैं हम

फ़ानी बदायुनी

तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा

फ़ानी बदायुनी

शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई

फ़ानी बदायुनी

रह जाए या बला से ये जान रह न जाए

फ़ानी बदायुनी

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

फ़ानी बदायुनी

ले ए'तिबार-ए-वादा-ए-फ़र्दा नहीं रहा

फ़ानी बदायुनी

कुछ कम तो हुआ रंज-ए-फ़रावान-ए-तमन्ना

फ़ानी बदायुनी

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

फ़ानी बदायुनी

जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है

फ़ानी बदायुनी

इश्क़ इश्क़ हो शायद हुस्न में फ़ना हो कर

फ़ानी बदायुनी

बे-ज़ौक़-ए-नज़र बज़्म-ए-तमाशा न रहेगी

फ़ानी बदायुनी

बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते

फ़ानी बदायुनी

ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया

फ़ानी बदायुनी

यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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