मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे

मसअला आज मिरे इश्क़ का तू हल कर दे

प्यार कर टूट के मुझ से मुझे पागल कर दे

लूट ले मेरा सुकूँ और मुझे बे-कल कर दे

यूँ सिमट आ मिरी बाँहों में उन्हें शल कर दे

देख कर पहली नज़र में जो उमड आए थे

फिर से जज़्बात में पैदा वही हलचल कर दे

बन के घनघोर घटा मुझ पे तू छा खुल के बरस

ख़ुश्क सहरा को मिरे जिस्म के जल-थल कर दे

किस तरह वक़्त गुज़रता है पता ही न चले

इब्तिदा आज से कर और उसे कल कर दे

तेरे बिन मुझ को अधूरा सा लगे अपना वजूद

यूँ समा मुझ में मिरा जिस्म मुकम्मल कर दे

झील आँखों की मिरी जान ज़रा सदक़ा उतार

और मिरे नाम तू आँखों का ये काजल कर दे

और कुछ तुझ से नहीं माँगता ऐ जान-ए-हयात

वक़्त बस मेरे लिए अपना हर इक पल कर दे

चाहता हूँ कि न देखें तुझे दुनिया वाले

सिर्फ़ पर्दे के लिए सामने आँचल कर दे

क़ब्ल इस के मुझे झुलसा दे ग़मों का सूरज

मुझ पे तू अपनी सियह ज़ुल्फ़ों का बादल कर दे

मेरे अल्लाह नज़र भर के उसे देख तो लूँ

फिर तू चाहे मिरी आँखों को मुक़फ़्फ़ल कर दे

डूब जाऊँ मैं तिरे इश्क़-समुंदर में 'नदीम'

अपनी साँसों से मिरी साँसों को बोझल कर दे

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