जिगर Poetry (page 18)

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है

ग़ालिब

फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई

ग़ालिब

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे

ग़ालिब

अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे

ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

दिल तमाम आईने तीरा कौन रौशन कौन

गौहर होशियारपुरी

सदाक़तों के दहकते शोलों पे मुद्दतों तक चला किए हम

फ़ुज़ैल जाफ़री

रिश्ता जिगर का ख़ून-ए-जिगर से नहीं रहा

फ़ुज़ैल जाफ़री

इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुनून-ए-कारगर है और मैं हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला

फ़िराक़ गोरखपुरी

अहल-ए-हुनर के दिल में धड़कते हैं सब के दिल

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मैं जिस जगह हूँ वहाँ बूद-ओ-बाश किस की है

फ़ाज़िल जमीली

ये दौर कैसा है या-इलाही कि दोस्त दुश्मन से कम नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

वो बर्क़ का हो कि मौजों के पेच-ओ-ताब का रंग

फ़ाज़िल अंसारी

मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को ज़ख़्म-ए-दामन-दार होना था

फ़ाज़िल अंसारी

गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

बशर की ज़ात में शर के सिवा कुछ और नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

ऐ कहकशाँ गुज़र के तिरी रहगुज़र से हम

फ़ाज़िल अंसारी

तेरी तस्वीर को तस्कीन-ए-जिगर समझे हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की

फ़ारूक़ नाज़की

तुम्हारे क़स्र-आज़ादी के मेमारों ने क्या पाया

फ़ारूक़ बाँसपारी

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