शरीर Poetry (page 29)

अगर मैं चीख़ूँ

फ़रहत एहसास

ये सारे ख़ूबसूरत जिस्म अभी मर जाने वाले हैं

फ़रहत एहसास

ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे

फ़रहत एहसास

वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं

फ़रहत एहसास

उस को है इश्क़ बताना भी नहीं चाहता है

फ़रहत एहसास

तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम

फ़रहत एहसास

तेरा भला हो तू जो समझता है मुझ को ग़ैर

फ़रहत एहसास

साहिब-ए-इश्क़ अब इतनी सी तो राहत मुझे दे

फ़रहत एहसास

सब लज़्ज़तें विसाल की बेकार करते हो

फ़रहत एहसास

रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ

फ़रहत एहसास

रात बहुत शराब पी रात बहुत पढ़ी नमाज़

फ़रहत एहसास

पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है

फ़रहत एहसास

नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है

फ़रहत एहसास

मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे

फ़रहत एहसास

मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है

फ़रहत एहसास

मिरे शे'रों में फ़नकारी नहीं है

फ़रहत एहसास

मौत ही एक दवा है और वो जारी है

फ़रहत एहसास

मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे

फ़रहत एहसास

मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता

फ़रहत एहसास

महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो

फ़रहत एहसास

लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम

फ़रहत एहसास

क्या बैठ जाएँ आन के नज़दीक आप के

फ़रहत एहसास

कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना

फ़रहत एहसास

कुछ बताता नहीं क्या सानेहा कर बैठा है

फ़रहत एहसास

ख़लल आया न हक़ीक़त में न अफ़्साना बना

फ़रहत एहसास

ख़ाक ओ ख़ूँ की नई तंज़ीम में शामिल हो जाओ

फ़रहत एहसास

ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा

फ़रहत एहसास

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास

काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई

फ़रहत एहसास

जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए

फ़रहत एहसास

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