शरीर Poetry (page 44)

क्या आग सब से अच्छी ख़रीदार है

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

दुआ की राख पे मरमर का इत्र-दाँ उस का

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

राह तकते जिस्म की मज्लिस में सदियाँ हो गईं

आफ़ताब शम्सी

सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह

आफ़ताब शम्सी

कोई अच्छी सी ग़ज़ल कानों में मेरे घोल दे

आफ़ताब शम्सी

असीर-ए-जिस्म हूँ दरवाज़ा तोड़ डाले कोई

आफ़ताब शम्सी

असीर-ए-हाफ़िज़ा हो आज के जहान में आओ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

असास-ए-जिस्म उठाऊँ नए सिरे से मगर

आफ़ताब हुसैन

शब-ए-सियाह पे वा रौशनी का बाब तो हो

आफ़ताब हुसैन

प्यासी हैं रगें जिस्म को ख़ूँ मिल नहीं सकता

आफ़ताब आरिफ़

ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस

अफ़रोज़ आलम

ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस

अफ़रोज़ आलम

दुश्मनों को मिरे हमराज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम

उँगली से उस के जिस्म पे लिक्खा उसी का नाम

आदिल मंसूरी

जाने किस को ढूँडने दाख़िल हुआ है जिस्म में

आदिल मंसूरी

वो मर गई थी

आदिल मंसूरी

साए की पिसली से निकला है जिस्म तिरा

आदिल मंसूरी

नज़्म

आदिल मंसूरी

लफ़्ज़ की छाँव में

आदिल मंसूरी

गोल कमरे को सजाता हूँ

आदिल मंसूरी

एक नज़्म

आदिल मंसूरी

दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया

आदिल मंसूरी

सोए हुए पलंग के साए जगा गया

आदिल मंसूरी

साँस की आँच ज़रा तेज़ करो

आदिल मंसूरी

कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ

आदिल मंसूरी

जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा

आदिल मंसूरी

इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

दूर उफ़ुक़ के पार से आवाज़ के पर्वरदिगार

आदिल मंसूरी

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