जुदाई Poetry (page 3)

सफ़र के बीच वो बोला कि अपने घर जाऊँ

सिदरा सहर इमरान

ग़मगीन बे-मज़ा बड़ी तन्हा उदास है

सिदरा सहर इमरान

होंटों पे सुख़न आँखों में नम भी नहीं अब के

सिद्दीक़ मुजीबी

अजनबी राह-गुज़र

सिद्दीक़ कलीम

क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है

शुजा ख़ावर

यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं

शुजा ख़ावर

जब मंज़िलों वहम था न शब का

शोहरत बुख़ारी

दिल उस से लगा जिस से रूठा भी नहीं जाता

शोहरत बुख़ारी

नाला इस शोर से क्यूँ मेरा दुहाई देता

ज़ौक़

जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा

ज़ौक़

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

दिल लिया जिस ने बेवफ़ाई की

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

ज़रा सी बात थी बात आ गई जुदाई तक

शाज़ तमकनत

साँसों में बसे हो तुम आँखों में छुपा लूँगा

शाज़ तमकनत

मिसाल-ए-शोला-ओ-शबनम रहा है आँखों में

शाज़ तमकनत

अभी तो अच्छी लगेगी कुछ दिन जुदाई की रुत

शारिक़ कैफ़ी

उदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ है

शारिक़ कैफ़ी

कुछ भी हो उस से जुदाई का सबब घर जाओ

शरीफ़ अहमद शरीफ़

ज़रा भी जिस की वफ़ा का यक़ीन आया है

शमीम जयपुरी

फूल से लोगों को मिट्टी में मिला कर आएगी

शकील सरोश

दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है

शकील जमाली

नुमायाँ दोनों जानिब शान-ए-फ़ितरत होती जाती है

शकील बदायुनी

दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है

शकेब जलाली

वस्ल की शब में भी हम बाहम दिगर रोया किए

शैख़ करिमुद्दीन मुरादाबादी

देर हो जाएगी फिर किस को सुनाई दोगे

शहज़ाद क़मर

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है

शहरयार

वो मोड़

शहरयार

रात जुदाई की रात

शहरयार

ज़िंदगी जब भी तिरी बज़्म में लाती है हमें

शहरयार

ज़मीं से ता-ब-फ़लक धुँद की ख़ुदाई है

शहरयार

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