काम Poetry (page 4)

कहाँ तक हो सका कार-ए-मोहब्बत क्या बताएँ

ज़फ़र इक़बाल

हर बार मदद के लिए औरों को पुकारा

ज़फ़र इक़बाल

अपनी मर्ज़ी से भी हम ने काम कर डाले हैं कुछ

ज़फ़र इक़बाल

ज़मीं पे एड़ी रगड़ के पानी निकालता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

'ज़फ़र' फ़सानों कि दास्तानों में रह गए हैं

ज़फ़र इक़बाल

यकसू भी लग रहा हूँ बिखरने के बावजूद

ज़फ़र इक़बाल

वो एक तरहा से इक़रार करने आया था

ज़फ़र इक़बाल

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते

ज़फ़र इक़बाल

तिरे रास्तों से जभी गुज़र नहीं कर रहा

ज़फ़र इक़बाल

तक़ाज़ा हो चुकी है और तमन्ना हो रहा है

ज़फ़र इक़बाल

सिमटने की हवस क्या थी बिखरना किस लिए है

ज़फ़र इक़बाल

रह रह के ज़बानी कभी तहरीर से हम ने

ज़फ़र इक़बाल

पैदा ये ग़ुबार क्यूँ हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

न कोई बात कहनी है न कोई काम करना है

ज़फ़र इक़बाल

न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ

ज़फ़र इक़बाल

मैं ने कब दावा किया था सर-ब-सर बाक़ी हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था

ज़फ़र इक़बाल

कुछ भी न उस की ज़ीनत-ओ-ज़ेबाई से हुआ

ज़फ़र इक़बाल

कोई किनाया कहीं और बात करते हुए

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुश बहुत फिरते हैं वो घर में तमाशा कर के

ज़फ़र इक़बाल

जो नारवा था इस को रवा करने आया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ लम्हा-ए-शाम बिखेर दिया

ज़फ़र इक़बाल

दिल को रहीन-ए-बंद-ए-क़बा मत किया करो

ज़फ़र इक़बाल

ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है

ज़फ़र इक़बाल

बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं

ज़फ़र इक़बाल

बदला ये लिया हसरत-ए-इज़हार से हम ने

ज़फ़र इक़बाल

अजब कोई ज़ोर-ए-बयाँ हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है

ज़फ़र इक़बाल

आग का रिश्ता निकल आए कोई पानी के साथ

ज़फ़र इक़बाल

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