धूल Poetry (page 40)

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मूसा के सर पे पाँव है अहल-ए-निगाह का

ग़ुलाम मौला क़लक़

अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम

ग़ुलाम मौला क़लक़

आसमाँ अहल-ए-ज़मीं से क्या कुदूरत-नाक था

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है

ग़ुलाम मौला क़लक़

दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की

ग़ुलाम मौला क़लक़

दिल के हर जुज़्व में जुदाई है

ग़ुलाम मौला क़लक़

आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी

ग़ुबार भट्टी

जल्वा-ए-हुस्न अगर ज़ीनत-ए-काशाना बने

ग़ुबार भट्टी

आँखों में हया रख के भी बेबाक बहुत थे

ग़ौसिया ख़ान सबीन

न होते शाद आईन-ए-गुलिस्ताँ देखने वाले

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

बज़्म-ए-आलम में सदा हम भी नहीं तुम भी नहीं

ग़नी एजाज़

उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम

ग़मगीन देहलवी

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

ग़ालिब

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