धूल Poetry (page 39)

हज़ार ख़ाक के ज़र्रों में मिल गया हूँ मैं

हादी मछलीशहरी

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

हबीब जालिब

फिर कभी लौट कर न आएँगे

हबीब जालिब

महताब-सिफ़त लोग यहाँ ख़ाक-बसर हैं

हबीब जालिब

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

हबीब जालिब

दिल में भरी है ख़ाक में मिलने की आरज़ू

हबीब मूसवी

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हबीब मूसवी

हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है

हबीब मूसवी

है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़

हबीब मूसवी

तारे हमारी ख़ाक में बिखरे पड़े रहे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

पुराने पेड़ को मौसम नई क़बाएँ दे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

फ़लाह-ए-आदमियत में सऊबत सह के मर जाना

गुलज़ार देहलवी

बम धमाका

गुलनाज़ कौसर

आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में

गुलनार आफ़रीन

आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है

ग़ुलाम नबी हकीम

इत्र मिट्टी का लगाया चाहिए पोशाक में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तकल्लुम जो कोई करता है फ़ानी

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्म

गोपाल मित्तल

मसरफ़ के बग़ैर जल रहा हूँ

गोपाल मित्तल

मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मौजूदगी का उस की असर होने लगा है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ऊँचे दर्जे का सैलाब

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तज़ाद

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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