दिल में भरी है ख़ाक में मिलने की आरज़ू
ख़ाकिस्तरी हुआ है हमारी क़बा का रंग
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तेज़ी-ए-बादा कुजा तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार कुजा
ये साबित है कि मुतलक़ का तअय्युन हो नहीं सकता
है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़
लिख कर मुक़त्तआ'त में दीं उन को अर्ज़ियाँ
क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ
नासेह ये वा'ज़-ओ-पंद है बेकार जाएगा
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
दश्त-ओ-सहरा में हसीं फिरते हैं घबराए हुए
रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़
उस से क्या छुप सके बनाई बात
थोड़ी थोड़ी राह में पी लेंगे गर कम है तो क्या
हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है