दश्त-ओ-सहरा में हसीं फिरते हैं घबराए हुए
आज-कल ख़ाना-ए-उम्मीद है वीराँ किस का
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(799) Peoples Rate This
क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा
है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है
अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ
फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से
ज़बाँ पर तिरा नाम जब आ गया
मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है
वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए
फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है
बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा
गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट
किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर
मय-कदा है शैख़ साहब ये कोई मस्जिद नहीं