भगवान Poetry (page 37)

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को

इबरत बहराईची

अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं

इब्राहीम अश्क

दैर-ओ-हरम में दश्त-ओ-बयाबान-ओ-बाग़ में

इब्राहीम होश

कर बुरा तो भला नहीं होता

इब्न-ए-मुफ़्ती

हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

'माजिद' ख़ुदा के वास्ते कुछ देर के लिए

हुसैन माजिद

तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर

हुसैन माजिद

राहत ओ रंज से जुदा हो कर

हुसैन आबिद

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर

हिमायत अली शाएर

ईमाँ भी लाज रख न सका मेरे झूट की

हिमायत अली शाएर

बगूला

हिमायत अली शाएर

ये बात तो नहीं है कि मैं कम स्वाद था

हिमायत अली शाएर

जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए

हिमायत अली शाएर

दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो

हिमायत अली शाएर

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

याद इतना है मिरे लब पे फ़ुग़ाँ आई थी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

रंग-आमेज़ी से पैदा कुछ असर ऐसा हुआ

हीरा लाल फ़लक देहलवी

हो ख़ुदा का करम इरादों पर

हीरा लाल फ़लक देहलवी

दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो

हीरा लाल फ़लक देहलवी

आह-ए-ज़िंदाँ में जो की चर्ख़ पे आवाज़ गई

हीरा लाल फ़लक देहलवी

हमारे शे'र का हासिल तअस्सुरात से है

हयात मदरासी

कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा

हयात लखनवी

क्या बुतों में है ख़ुदा जाने ब-क़ौल-ए-उस्ताद

हातिम अली मेहर

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

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