खुशबू Poetry (page 8)

मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा

सिद्दीक़ मुजीबी

बस एक बूँद थी औराक़-ए-जाँ में फैल गई

सिद्दीक़ मुजीबी

अपने सीने को मिरे ज़ख़्मों से भरने वाली

सिद्दीक़ मुजीबी

सहर को धुँद का ख़ेमा जला था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

आ रही थी बंद कलियों के चटकने की सदा

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

तुम्हारे नाम कर बैठे दिल-ओ-जाँ की ख़ुशी साहब

शुमाइला बहज़ाद

ख़ुद फ़रिश्ते तो नहीं हैं जो मुझे ले जा रहे हैं

शुजा ख़ावर

तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा

शोला हस्पानवी

साँस की आस निगहबाँ है ख़बर-दार रहो

शोहरत बुख़ारी

चश्म-ए-गर्दूं फिर तमाज़त अपनी बरसाने लगी

शोएब निज़ाम

रक़ाबतों की तरह से हम ने मोहब्बतें बे-मिसाल की हैं

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

किस किस को अब रोना होगा जाने क्या क्या भूल गया

शाज़ तमकनत

एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है

शाज़ तमकनत

तिरी साज़िशों से ही जुगनू मरे

शाैकत हाशमी

ख़ाक को मैं ख़्वार क्यूँ करता

शारिक़ कैफ़ी

जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू

शरफ़ मुजद्दिदी

ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का

शरफ़ मुजद्दिदी

दर-पा-ए-अजल

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को

शमशीर हैदर

लफ़्ज़-ओ-मा'नी के समुंदर का सफ़र हैं कुछ लोग

शम्स रम्ज़ी

बिछड़ते टूटते रिश्तों को हम ने देखा था

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

मिरे अतराफ़ ये कैसी सदाएँ रक़्स करती हैं

शमीम रविश

पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है

शमीम करहानी

शहर-ए-जाँ में इज़तिराब-ए-सोज़-ए-फ़न देखेगा कौन

शमीम आज़र

पलकों पे लरज़ते रहे आँसू की तरह हम

शकील शम्सी

ज़िंदगी और मौत का यूँ राब्ता रह जाएगा

शकील सरोश

ज़ात का गहरा अंधेरा है बिखर जा मुझ में

शकील मज़हरी

हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी

शकील जमाली

रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे

शकील जमाली

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