लोग Poetry (page 59)

वो जिन दरख़्तों की छाँव में से मुसाफ़िरों को उठा दिया था

अहमद सलमान

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे

अहमद सलमान

अजनबी लोग हैं मैं जिन में घिरा रहता हूँ

अहमद रिज़वान

बात करने का नहीं सामने आने का नहीं

अहमद रिज़वान

आता ही नहीं होने का यक़ीं क्या बात करूँ

अहमद रिज़वान

कोई हसरत भी नहीं कोई तमन्ना भी नहीं

अहमद राही

सुब्ह होते ही निकल आते हैं बाज़ार में लोग

अहमद नदीम क़ासमी

तदफ़ीन

अहमद नदीम क़ासमी

पस-ए-आईना

अहमद नदीम क़ासमी

नया साल

अहमद नदीम क़ासमी

जंगल की आग

अहमद नदीम क़ासमी

दुआ

अहमद नदीम क़ासमी

दश्त-ए-वफ़ा

अहमद नदीम क़ासमी

वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे

अहमद नदीम क़ासमी

उम्र भर उस ने इसी तरह लुभाया है मुझे

अहमद नदीम क़ासमी

खड़ा था कब से ज़मीं पीठ पर उठाए हुए

अहमद नदीम क़ासमी

जो लोग दुश्मन-ए-जाँ थे वही सहारे थे

अहमद नदीम क़ासमी

बारिश की रुत थी रात थी पहलू-ए-यार था

अहमद नदीम क़ासमी

संग उठाना तो बड़ी बात है अब शहर के लोग

अहमद मुश्ताक़

ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे

अहमद मुश्ताक़

ले के हम-राह छलकते हुए पैमाने को

अहमद मुश्ताक़

कैसे उन्हें भुलाऊँ मोहब्बत जिन्हों ने की

अहमद मुश्ताक़

हमें सब अहल-ए-हवस ना-पसंद रखते हैं

अहमद मुश्ताक़

दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है

अहमद मुश्ताक़

चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले

अहमद मुश्ताक़

उधर से आए तो फिर लौट कर नहीं गए हम

अहमद महफ़ूज़

छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ

अहमद महफ़ूज़

उन को में कर्बला के महीने में लाऊँगा

अहमद ख़याल

सुकूत तोड़ने का एहतिमाम करना चाहिए

अहमद ख़याल

क़यामत से क़यामत से गुज़ारे जा रहे थे

अहमद ख़याल

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