आगे बढ़ो Poetry (page 5)

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

शरीफ़ कुंजाही

जो आँसुओं की ज़बाँ को मियाँ समझने लगे

शारिब मौरान्वी

अपनी आँखों पर वो नींदों की रिदा ओढ़े हुए

शारिब मौरान्वी

बयान सफ़ाई

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

शोर-ए-तूफ़ान-ए-हवा है बे-अमाँ सुनते रहो

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

इज़हार-ए-तशक्कुर

शमीम क़ासमी

ये सिलसिला ग़मों का न जाने कहाँ से है

शकील ग्वालिआरी

जान की बारी है अब दिल का ज़ियाँ ऐसा न था

शकील ग्वालिआरी

वो दिल में रहते हैं दिल का निशाँ नहीं मा'लूम

शकील बदायुनी

लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले

शकील बदायुनी

बेगाना हो के बज़्म-ए-जहाँ देखता हूँ मैं

शकील बदायुनी

बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी अगर उन्हें पेश-ओ-पस नहीं है

शकील बदायुनी

ज़िंदा रहना है तो साँसों का ज़ियाँ और सही

शकील आज़मी

अब इस से मिलने की उम्मीद क्या गुमाँ भी नहीं

शकील आज़मी

इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से

शकेब जलाली

ग़म-ए-उल्फ़त मिरे चेहरे से अयाँ क्यूँ न हुआ

शकेब जलाली

कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

आशिक़ों के सैर करने का जहाँ ही और है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

चाहे अब आप भी मुझे आसेब ही कहें

शहज़ाद अहमद

वापसी

शहरयार

पहले सफ़्हे की पहली सुर्ख़ी

शहरयार

एक और मौत

शहरयार

कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें

शहरयार

हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है

शहरयार

फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया

शहराम सर्मदी

याद की बस्ती का यूँ तो हर मकाँ ख़ाली हुआ

शहराम सर्मदी

ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है

शहराम सर्मदी

इक हुजूम-ए-गिर्या की हर नज़र तमाशाई

शाहिदा तबस्सुम

मिले जो नाक़ा-ए-वहशत को सारबाँ कोई

शाहिदा हसन

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