मज़ा Poetry (page 4)

मुश्किल उस कूचे से उठना हो गया

रियाज़ ख़ैराबादी

जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

अगर उन के लब पर गिला है किसी का

रियाज़ ख़ैराबादी

उस चाँद को तुम दिल में छुपा क्यूँ नहीं लेते

रियाज़ हान्स

तल्ख़ी-ए-ज़िंदगी अरे तौबा

रविश सिद्दीक़ी

क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला

रविश सिद्दीक़ी

हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते

रशीद लखनवी

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

गर्म रफ़्तार है तेरी ये पता देते हैं

रशीद लखनवी

अगर दिला ग़म-ए-गेसू-ए-यार बढ़ जाता

रशीद लखनवी

ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

फ़स्ल-ए-गुल में जो कोई शाख़-ए-सनोबर तोड़े

रजब अली बेग सुरूर

राज़-ए-गिरफ़्तगी न असीर-ए-लहन से पूछ

रईस अमरोहवी

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

रईस अमरोहवी

दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए

इरफ़ान सत्तार

अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है

इरफ़ान सत्तार

दर्द का जब तक मज़ा हासिल न था

इरम लखनवी

उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में

इक़बाल सुहैल

कैफ़-ए-हयात तेरे सिवा कुछ नहीं रहा

इक़बाल कैफ़ी

तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन

इंशा अल्लाह ख़ान

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का

इम्दाद इमाम असर

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

इम्दाद इमाम असर

वस्ल में ज़िक्र ग़ैर का न करो

इमदाद अली बहर

तेरी हर इक बात है नश्तर न छेड़

इमदाद अली बहर

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

इमदाद अली बहर

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

इमदाद अली बहर

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