मज़ा Poetry (page 6)

उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए

हैदर अली आतिश

सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का

हैदर अली आतिश

ख़ार मतलूब जो होवे तो गुलिस्ताँ माँगूँ

हैदर अली आतिश

कौन कहता है कि महरूमी का शिकवा न करो

हफ़ीज़ मेरठी

जान ही जाए तो जाए दर्द-ए-दिल

हफ़ीज़ जौनपुरी

वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा

हफ़ीज़ बनारसी

फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल

हबीब जालिब

उर्दू ज़बाँ

गुलज़ार

नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा

ग़ुलाम भीक नैरंग

कट गई बे-मुद्दआ सारी की सारी ज़िंदगी

ग़ुलाम भीक नैरंग

कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब

ग़ालिब

इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया

ग़ालिब

हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ग़ालिब

हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है

ग़ालिब

हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या

ग़ालिब

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव

ग़ालिब

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

ग़ालिब

ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है

फ़ुज़ैल जाफ़री

लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए

फ़ुज़ैल जाफ़री

घर से बे-ज़ार हूँ कॉलेज में तबीअ'त न लगे

फ़ुज़ैल जाफ़री

जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता

फ़िगार उन्नावी

चोरी ख़ुदा से जब नहीं बंदों से किस लिए

फ़य्याज़ हाशमी

मस्तों के जो उसूल हैं उन को निभा के पी

फ़य्याज़ हाशमी

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