ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है
बात सच कहिए मगर यूँ कि हक़ीक़त न लगे
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1020) Peoples Rate This
लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए
चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए
हर आदमी में थे दो चार आदमी पिन्हाँ
गिर भी जाएँ तो न मिस्मार समझिए हम को
अख़्लाक़ ओ शराफ़त का अंधेरा है वो घर में
मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़र जाती है हर रात मिरे
मैं और मिरी ज़ात अगर एक ही शय हैं
रुख़ हवाओं के किसी सम्त हों मंज़र हैं वही
मंज़िलें सम्तें बदलती जा रही हैं रोज़ ओ शब
गुज़र रही है मगर ख़ासे इज़्तिराब के साथ
निभेगी किस तरह दिल सोचता है