मज़ा Poetry (page 10)

तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ

अहमद कमाल परवाज़ी

तुम को मालूम जवानी का मज़ा है कि नहीं

अहमद हुसैन माइल

वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ

अहमद हुसैन माइल

समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट

अहमद हुसैन माइल

मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस

अहमद हुसैन माइल

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

अहमद हुसैन माइल

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

अहमद हुसैन माइल

इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को लटका लिया है गेसू में

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

पाता नहीं हूँ और किसी काम से लज़्ज़त

आफ़ताब शाह आलम सानी

इन शोख़ हसीनों की अदा और ही कुछ है

अबुल कलाम आज़ाद

मज़े की बात तो ये है कि बे-मज़ा है वो दिल

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दिल ग़म-ए-इश्क़ के इज़हार से कतराता है

अब्दुल मलिक सोज़

जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए

अब्दुल हमीद अदम

क्या सहल समझे हो कहीं धब्बा छुटा न हो

अब्दुल हलीम शरर

क्या सहल समझे हो कहीं धब्बा छुटा न हो

अब्दुल हलीम शरर

नक़्श-ए-दिल है सितम जुदाई का

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

उस से उम्मीद-ए-वफ़ा ऐ दिल-ए-नाशाद न कर

अब्दुल अलीम आसि

इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ

आसी ग़ाज़ीपुरी

साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन

आल-ए-अहमद सूरूर

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