मज़ा Poetry (page 3)

चमन को आग लगाने की बात करता हूँ

शाद आरफ़ी

शायद जगह नसीब हो उस गुल के हार में

सीमाब अकबराबादी

दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा

मोहम्मद रफ़ी सौदा

निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो

सरवत ज़ेहरा

क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है

सरवर आलम राज़

वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा

सरवत हुसैन

सेंट की कजले की और ग़ाज़े की गुल-कारी के ब'अद

सरफ़राज़ शाहिद

मैं फ़र्त-ए-मसर्रत से डर है कि न मर जाऊँ

सरदार सोज़

दर-ए-मय-कदा है खुला हुआ सर-ए-चर्ख़ आज घटा भी है

सरदार सोज़

गो हम शराब पीते हमेशा हैं दे के नक़्द

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

बातों में है उस की ज़हर थोड़ा

सलीम शहज़ाद

लगता है वो आज ख़्वाब जैसा

सलीम शहज़ाद

सितम तू करता है लेकिन दुआ भी देता है

सज्जाद सय्यद

अधूरी नस्ल का पूरा सच

सईद अहमद

क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की

सदा अम्बालवी

सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का

साबिर

वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं

साबिर

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं

सबा अकबराबादी

रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो

रियाज़ ख़ैराबादी

पाऊँ तो उन हसीनों के मुँह चूम लूँ 'रियाज़'

रियाज़ ख़ैराबादी

पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'

रियाज़ ख़ैराबादी

क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'

रियाज़ ख़ैराबादी

कहती है ऐ 'रियाज़' दराज़ी ये रीश की

रियाज़ ख़ैराबादी

हम जानते हैं लुत्फ़-ए-तक़ाज़ा-ए-मय-फ़रोश

रियाज़ ख़ैराबादी

ज़िद हमारी दुआ से होती है

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में

रियाज़ ख़ैराबादी

उन के होते कौन देखे दीदा-ओ-दिल का बिगाड़

रियाज़ ख़ैराबादी

थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप

रियाज़ ख़ैराबादी

न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का

रियाज़ ख़ैराबादी

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