बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
थोड़ा सा मज़ा शराब जैसा
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अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना
लगता है वो आज ख़्वाब जैसा
कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना
अबजद
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले
उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी
रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था
हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो
रंग ताबीर का टूटे हुए ख़्वाबों में नहीं
नहीं है कोई दूसरा मंज़र चारों ओर