अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना
रह गया जो कुछ भी सोचा सोच ले
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
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Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
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बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
वहम ओ ख़िरद के मारे हैं शायद सब लोग
बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है
रंग ताबीर का टूटे हुए ख़्वाबों में नहीं
उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी
कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना
अबजद
ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़
सदियों के रंग-ओ-बू को न ढूँडो गुफाओं में
रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था