वहम ओ ख़िरद के मारे हैं शायद सब लोग
देख रहा हूँ शीशे के घर चारों ओर
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
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हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो
रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था
ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू
बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
नहीं है कोई दूसरा मंज़र चारों ओर
यक़ीन है कि वो मेरी ज़बाँ समझता है
कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना
सदियों के रंग-ओ-बू को न ढूँडो गुफाओं में
उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी
बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है