हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
वो इक ज़ख़्मी परिंदे की तरह था
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हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो
ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़
यक़ीन है कि वो मेरी ज़बाँ समझता है
अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना
सदियों के रंग-ओ-बू को न ढूँडो गुफाओं में
लगता है वो आज ख़्वाब जैसा
बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है
किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू
शहरयारों ने दिखाईं मुझ को तस्वीरें बहुत
नहीं है कोई दूसरा मंज़र चारों ओर
अबजद