निशां Poetry (page 12)

ज़ीस्त का ख़ाली कटोरा आप ही भर जाएगा

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और

ग़ालिब

ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ

ग़ालिब

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे

फ़ाज़िल जमीली

ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक

फ़ाज़िल अंसारी

हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा

फ़ाज़िल अंसारी

राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे

फ़े सीन एजाज़

इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है

फ़रियाद आज़र

कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे

फ़र्रुख़ जाफ़री

यूँ मुसल्लत तो धुआँ जिस्म के अंदर तक है

फ़र्रुख़ जाफ़री

मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें

फ़र्रुख़ जाफ़री

किसी बहाने भी दिल से अलम नहीं जाता

फ़र्रुख़ जाफ़री

ख़याल उस का कहाँ से कहाँ नहीं जाता

फ़र्रुख़ जाफ़री

सुनहरी दरवाज़े के बाहर

फ़ारूक़ नाज़की

वो बस्ती याद आती है

फ़ारूक़ बख़्शी

ख़तरे का निशान

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए

फ़ारिग़ बुख़ारी

आग़ाज़ की तारीख़

फ़रहत एहसास

उस तरफ़ तू तिरी यकताई है

फ़रहत एहसास

ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे

फ़रहान सालिम

मैं तिरे संग कैसे चलूँ हम-सफ़र तू समुंदर है मैं साहिलों की हवा

फ़रहान सालिम

शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है

फ़रीद जावेद

किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग

फ़रीद जावेद

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