पास Poetry (page 28)

जड़ों से सूखता तन्हा शजर है

फ़सीह अकमल

सुनहरी दरवाज़े के बाहर

फ़ारूक़ नाज़की

इतनी ख़राब सूरत-ए-हालात भी नहीं

फ़ारूक़ नाज़की

वो बस्ती याद आती है

फ़ारूक़ बख़्शी

तारे शुमार करते हैं रो रो के रात भर

फ़ारूक़ अंजुम

मोहब्बत का ये रुख़ देखा नहीं था

फ़रहत नदीम हुमायूँ

जिसे भी प्यास बुझानी हो मेरे पास रहे

फ़रहत एहसास

तह-ए-बदन कहीं बेदार होता जाता हूँ

फ़रहत एहसास

रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम

फ़रहत एहसास

पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है

फ़रहत एहसास

मेरी मिट्टी का नसब बे-सर-ओ-सामानी से

फ़रहत एहसास

कुछ बताता नहीं क्या सानेहा कर बैठा है

फ़रहत एहसास

जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज

फ़रहत एहसास

जिस्म के पार वो दिया सा है

फ़रहत एहसास

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास

हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं

फ़रहत एहसास

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

फ़रहत एहसास

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

बे-रंग बड़े शहर की हस्ती भी वहीं थी

फ़रहत एहसास

ब-रंग-ए-सब्ज़ा उन्ही साहिलों पे जम जाएँ

फ़रहत एहसास

अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़

फ़रहत एहसास

जब तिरी ज़ात को फैला हुआ दरिया समझूँ

फ़रहत अब्बास

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

छिपकिली

फ़रीद इशरती

ज़ौक़-ए-परवाज़ में साबित हुआ सय्यारों से

फ़रीद इशरती

मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था

फ़रह इक़बाल

मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ

फ़राग़ रोहवी

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