पेड़ Poetry (page 1)

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

वो निशाना भी ख़ता जाता तो बेहतर होता

अब्दुल्लाह कमाल

मैं ने बाग़ की जानिब पीठ कर ली

जवाज़ जाफ़री

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

मैं ने अपना वजूद गठड़ी में बाँध लिया

जवाज़ जाफ़री

असातीरी नज़्म

जवाज़ जाफ़री

बे-साया पेड़

काशिफ़ रफ़ीक़

क़र्या-ए-वीराँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

परिंदे लौट आए

ज़ुबैर रिज़वी

नया जन्म

ज़ुबैर रिज़वी

तुम ने भी उन से ही मिलना होता है

ज़िया मज़कूर

देख फूलों से लदे धूप नहाए हुए पेड़

ज़िया जालंधरी

टाइपिस्ट

ज़िया जालंधरी

पैग़ाम

ज़िया जालंधरी

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

ज़िया जालंधरी

गुल-चाँदनी

ज़ेहरा निगाह

रात की ख़ामोशी का माथा ठंका था

ज़िशान इलाही

हो चुके गुम सारे ख़द्द-ओ-ख़ाल मंज़र और मैं

ज़ेब ग़ौरी

ज़ोर से थोड़ी उसे पुकारा करना है

ज़हरा क़रार

बे-बर्ग-ओ-बार राह में सूखे दरख़्त थे

ज़हीर सिद्दीक़ी

हवा-ए-हिज्र चली दिल की रेगज़ारों में

ज़हीर काश्मीरी

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

नवा-ए-हक़ पे हूँ क़ातिल का डर अज़ीज़ नहीं

ज़फ़र कलीम

इसी खंडर में मिरे ख़्वाब की गली भी थी

यूसुफ़ हसन

उसी हरीफ़ की ग़ारत-गरी का डर भी था

यूसुफ़ हसन

मुझे आगही का निशाँ समझ के मिटाओ मत

यासमीन हामिद

मैं और तू

वज़ीर आग़ा

जब आँख खुली मेरी

वज़ीर आग़ा

अजनबी

वज़ीर आग़ा

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