पेड़ Poetry (page 2)

डर मौत का न ख़ौफ़ किसी देवता का था

वसीम मीनाई

सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है

वाली आसी

धुएँ की ओट से बाहर भी आ गया होता

वाजिद क़ुरैशी

खंडर आसेब और फूल

वहीद अख़्तर

शाम के दिन रात

वहीद अहमद

जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके

वहाब दानिश

ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता

वहाब दानिश

महताब फ़ज़ा के आइने में

वसाफ़ बासित

मोहब्बत का घर

वर्षा गोरछिया

खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े

उमैर नजमी

मरते मरते रौशनी का ख़्वाब तो पूरा हुआ

तौसीफ़ तबस्सुम

अक्स-ए-ज़ंजीर पे जाँ देने के पहलू दूँगा

तसनीम फ़ारूक़ी

मिरे चारा-गर तुझे क्या ख़बर, जो अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल है

तसनीम आबिदी

डूबा हूँ तो किस शख़्स का चेहरा नहीं उतरा

तारिक़ जामी

चार साल बा'द

तनवीर अंजुम

ढलती रात

तख़्त सिंह

शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी

ताज सईद

किस ने आ कर हम को दी आवाज़ पिछली रात में

ताज सईद

वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं

तहज़ीब हाफ़ी

सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है

तहज़ीब हाफ़ी

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा

तहज़ीब हाफ़ी

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

तहज़ीब हाफ़ी

बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता

तहज़ीब हाफ़ी

अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी

तहज़ीब हाफ़ी

कहीं ख़ुलूस की ख़ुशबू मिले तो रुक जाऊँ

ताहिर फ़राज़

वही बे-लिबास क्यारियाँ कहीं बेल बूटों के बल नहीं

तफ़ज़ील अहमद

खड़खड़ाता एक पत्ता जब गिरा इक पेड़ से

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

जो माल उस ने समेटा था वो भी सारा गया

सय्यद अनवार अहमद

उल्टे सीधे गिरे पड़े हैं पेड़

सूर्यभानु गुप्त

रंज इस का नहीं कि हम टूटे

सूर्यभानु गुप्त

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